बच्चों के दिल की परवरिश कैसे करना चाहिए
इस ब्लॉग में आप पढ़ सकते हैं कि बच्चों के शरीर और दिमाग को तंदुरुस्त रखने के साथ-साथ दिल को भी कैसे तंदुरुस्त रखा जासकता है
इंसान का व्यवहार और बर्ताव (behavior) बहूत महत्वपूर्ण (important) होता है। क्योंकि दुनिया में इंसान की पहचान ही अच्छे या बुरे व्यवहार से होती है और इस व्यवहार को सिखाने की जिम्मेदारी मां-बाप के कंधों पर है। बच्चों की नैतिक और धार्मिक शिक्षा का इंतजाम करना माता-पिता का धर्म और कर्तव्य है। क्योंकि बचपन में जो आदत पड़ जाती है, बुढ़ापे तक वो आदत क़ायम रहती है। अगर औलाद को बचपन में ही गलत माहौल, गलत सोसाइटी और गलत रास्ते पर डाल दिया गया तो जवान होकर भी वह उसी गलत रास्ते और तरीक़े का इंतखाब (सिलेक्शन) करेगा। यानी अगर बच्चों की परवरिश में लापरवाही बरती गई, और उसे सही और गलत की तमीज़ ना सिखाई गई तो बच्चा ना सिर्फ मां बाप के लिए बल्कि पूरे देश, समाज और इंसानियत के लिए भी तबाही और बर्बादी का कारण बनेगा।
इसलिए जब किसी के घर औलाद पैदा हो तो पहले उस का अच्छा सा नाम रखें क्योंकि बेतुका और बे-मायने नाम बाद में औलाद के लिए शर्मिंदगी का करण बनता है, जैसे कल्लू, पप्पो, चिंटू वगैरा...., और फिर जैसे जैसे वह बड़ा होने लगे तो मोहब्बत से उसे उठने बैठने खाने-पीने का सही तरीका सिखाना चाहिए और उसे बड़ों की इज्ज़त और उन से नरमी से पेश आने की ताक़ीद करना चाहिए, अकड़ कर चलने और चिल्ला कर बात करने से मना करना चाहिए।
बच्चा की जिस्मानी सहित का ख्याल रखना चाहिए उनके बेहतर शारीरिक विकास के लिए अच्छे भोजन और अच्छी आबोहवा (जलवायु) का इंतिजाम करना चाहिए। और जरूरत के हिसाब से उनके लिए टॉनिक और दवा का इंतजाम भी जरूरी है ताकि उनका शरीर और दिमाग दोनों तंदुरुस्त हो सके।
लेकिन बच्चों की शारीरिक और दिमागी परवरिश के साथ-साथ दिल की भी परवरिश पर ध्यान देना चाहिए, दिल की परवरिश का मतलब है अपने बच्चों में खुद्दारी, ईमानदारी और वफादारी का जज़्बा पैदा करना। बच्चों के दिल में इंसानों से हमदर्दी का जज़्बा कूट कूट कर भर देना चाहिए ताकि वह किसी को तकलीफ़ में देखकर बेचैन हो जाए, किसी को दुख देने का ख्याल दिल में ना पैदा हो। इंसानों की खिदमत कर के, जरूरतमंदों की मदद करके और बेसहारा को सहारा देकर उसे खुशी महसूस हो और जुल्म और अत्याचार से नफरत हो जाए।
इसलिए बच्चों के दिल के हर कोने पर खास ध्यान देना माँ-बाप का फर्ज है, जैसे बच्चा दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव कर रहा है मगर ख़ुदा से इसका कोई लगाव नहीं है, या उस के दिल में दूसरों को देने की चाहत है मगर किसी और का एहसान लेना उसे मंजूर नहीं या अपनी गलती पर माफी मांगने के लिए तैयार है मगर दूसरों को माफ करने पर राज़ी नहीं तो ऐसी हालत में मां-बाप को चाहिए कि वह अपने बच्चे को सही तरबियत(प्रशिक्षण) देना चाहिए।
इसलिए माँ-बाप अपने बच्चों की सिर्फ जिस्मानी और दिमागी तरबियत पर ध्यान ना दें बल्कि दिल की परवरिश पर भी ध्यान दें क्योंकि दिल की परवरिश के बगैर हम चालाक लोमड़ी, ताकतवर शेर, तेज रफ्तार घोड़ा, सख़्त जान गधा और दूसरे भांति भांति के जानवर को तैयार कर सकते हैं लेकिन दर्द-मंद और शुक्रगुजार इंसान नहीं तैयार कर सकेंगे।
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