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Islam Mein Aurat Aur Mard Ka Maqaam

  इस्लाम में औरत और मर्द का मक़ाम अल्लाह तआला ने पहले आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया फिर उनकी बाईं पसली से हव्वा अलैहिस्सलाम को पैदा किया. मगर ये वाज़ेह ( Clear) तौर पर बाइबल का बयान है, न कि क़ुरान का बयान . क़ुरान के मुताबिक़ आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम को एक ही मुश्तरिक मअदा से पैदा किया गया, न कि एक दूसरे के जिस्मानी हिस्से से . इसलिए क़ुरान का बयान इस बात की दलील है कि जब मर्द और औरत एक ही मुश्तरिक मअदा से पैदा किए गए हैं, तो यक़ीनन इन्सान होने के नाते से यकसाँ रुतबा और दर्जा के भी मुसतहिक़ होंगे. क्योंकि इन्साफ का तकाज़ा भी यही है और अल्लाह रब्बुल-इज्ज़त से बड़ी इंसाफ करने वाली कोई ज़ात नहीं है. ( सूरह- तौबा -71-72 ). क़ुरान की आयतों में मोमिन मर्द और मोमिन औरत दोनों का ज़िक्र यकसाँ हैसियत से किया गया है. इससे मालूम होता है कि इन्फरादी हैसियत में भी दोनों से इस्लाम का तक़ाज़ा यकसाँ है. और इनकी इखलाकी ज़िम्मेदारियाँ भी यकसाँ हैं. इसलिए इनाम और जज़ा के मामले में दोनों का हिस्सा बराबर होगा. यानी जो अमल एक मर्द को जन्नत में दाख़िले का हक़ देगा, इसी अमल से औरत भी जन्नत में दाख़िले की मुसतह