ISLAM KYA HAI ? ISLAM KE SIDDHAHNT AUR VISHESHTAEN


इस्लाम क्या है ?

इस्लाम के पाँच सिद्धांत व विशेषताएँ 

इस्लाम का शाब्दिक अर्थ "अमन और सलामती" है ।इस्लाम एक तौहीदी मजहब है यानी एक अल्लाह की इबादत करने वाला ।
इस्लाम मजहब - अल्लाह की तरफ से आख़िरी रसूल आप स.अ व. के जरिए इंसानों तक पहुंचाई गई आखिरी आसमानी किताब "कुरान मजीद" की तालीम पर कायम है, जोकि  610 से 632 तक- तक़रीबन 23 साल के अरसे में मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर जिब्राइल अलैहिस्सलाम नामी फरिश्ते के जरिए अरबी जुबान में  अल्लाह की तरफ से भेजा गया । इस्लाम सिर्फ एक मजहब नहीं बल्कि इंसान की रहनुमाई के लिए जो निजाम या फार्मूला और कानून अल्लाह की तरफ से फरमाया गया है __ उसका नाम इस्लाम है।

इस्लाम की आसमानी किताब कुरान मजीद में क्या तालीम दी गई है -
कुरान खुद अपनी हैसियत के बारे में बयान करता है कि यह इंसान के लिए एक रहनुमा एक हिदायत और अच्छे बुरे की तमीज बताने वाली किताब है । दूसरे लफ्जों में हम कह सकते हैं कि इस्लाम अल्लाह की तरफ से आखरी और मुकम्मल दीन है। जो इंसान के तमाम मसायल का हल पेश करता है और सिसकती हुई इंसानियत को अमन और सुकून की दौलत अता करते हुए दुनिया और आखिरत में कामयाबी का ज़रिया है।
इस किताब में अक़ीदा और इमान, इस्लामी जिंदगी और इबादत, इस्लाम और रूहानियत, इस्लाम का निजाम-ए-इख़्लाकियात, इस्लाम का सियासी निजाम, इस्लाम का अदालती निजाम, इल्म और फन की तरक्की के लिए मुसलमानों की खिदमत, मुसलमान मर्द और औरत की हैसियत , इस्लाम में गैर-मुसलमानों की हैसियत, इस्लाम की तारीख़, मुसलमानों की रोजमर्रा की जिंदगी गुज़ारने का तरीका बयान किया गया है।
इस्लाम दुनिया का वाहिद मजहब है जो हर तब्दीली और मिलावट से पाक है। इस की तमाम तालीम आज 1400 साल के बाद भी अपनी असल सूरत में महफूज है। यह किताब कयामत तक अपनी असली सूरत में मौजूद रहेगी क्योंकि ना तो अब कोई रसूल आएगा और ना कोई किताब अल्लाह की तरफ से उतारी जाएगी, यही वजह है कि इसका असल हालत में महफूज रखने की जिमेदारी अल्लाह ताला ने खुद लिया है __ यह कयामत तक अपनी असली शक्ल में मौजूद रहेगी।

इस्लाम के बुनियादी उसूल
इस्लाम की बुनियाद पाँच चीजों पर रखी गई है।

पहला उसूल दो हिस्सों पर आधारित है, पहला हिस्सा तौहीद कहलाता है। यह दिल और जुबान से इस बात का इकरार करना कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं वही हाजत रवां है और मुश्किल कशा है, जिंदगी और मौत का, नफा और नुकसान का मालिक है। कोई नबी कोई फरिश्ता या बुजुर्ग अल्लाह की जात या सिफात में कोई उसका शरीके नहीं है वह अपनी जात की तरह अपनी सिफ़ात यानी खूबियों में भी अकेला है। अल्लाह की वहदानियत के अलावा किसी और पर अक़ीदा रखना शिर्क कहलाता है। 

पहले उसूल का दूसरा हिस्सा रिसालत कहलाता है। इसका मतलब यह है कि अल्लाह ताला ने इंसानियत की रहनुमाई के लिए अपने पैगंबर भेजे। आदम अलैहिस्सलाम पहले नबी और आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम आखिरी नबी हैं। आप स.  अ. वसल्लम के बाद अब कयामत तक कोई नबी और रसूल नहीं आएगा अगर कोई नबूवत या रिसालत का दावा करें तो वह काफिर है।

इस्लाम का दूसरा उसूल :- इस्लाम का दूसरा उसूल नमाज है [नमाज यानी खुदा की याद करना और उसकी हम्द-ओ- सना(तारीफ़) करना] कलमा पढ़ लेने के बाद एक मुसलमान पर नमाज लागू हो जाती है। नमाज और खुदा की इबादत के बारे में जानने के लिए इस link ...https://sadiyasultanpuri.blogspot.com/2018/03/ibadat-ka-mafhoom.html पर जाएं।

तीसरा उसूल जकात है __ जो लोग मालदार हो वह अपनी दौलत में से ढाई फीसद हिस्सा अल्लाह की राह में खर्च करें ताकि दौलत की गर्दिश होती रहे और मालदार के दिल में दौलत की मोहब्बत बढ़ने ना पाये, इस के अलाव समाज के गरीब और मोहताज लोगों की मदद होती रहे। जकात के बारे में ज्यादा जानने के लिए इस Link ...https://sadiyasultanpuri.blogspot.com/2021/04/zaqat-kya-hai-aur-zaqat-ki-rahmat-aur.html पर जाएं


इस्लाम का चौथा उसूल हज यात्रा है __ हर मुसलमान पर जिंदगी में एक बार हज करना जरूरी है लेकिन शर्त यह है कि वह साहिबे माल हो यानी उसके पास इतना पैसा हो कि वह अपनी जरूरतें पूरी करने के बाद बचा सके ।

पांचवें नंबर पर आता है "रोजा" __  मुसलमान पर साल भर में रमजान मुबारक के महीने में एक महीना रोजा रखना फर्ज़ है। रोजा हर बालिग, सेहतमंद और बाशऊर मुसलमान मर्द और औरत पर फर्ज है।

इस्लाम की खूबी :-
इस्लाम सिर्फ एक मजहबी अक़ीदा और कुछ इबादत का संग्रह नहीं है बल्कि वह एक मुकम्मल सिस्टम है जो दुनिया से इंसानी जिंदगी के तमाम जालिमाना और बागियाना निजाम को मिटाता है और एक ऐसी राह दिखाता है जिस पर चलकर इंसानियत की तरक्की और उन्नति होती है।
इस्लाम अमानत और दयानंत दारी का सबक सिखाता है और बुनियादी तौर पर रवादारी की तालीम देता है और इसके साथ दूसरों के मजहब का एहतराम करना भी सिखाता है। इस्लाम में नाहक और हराम माल खाने को सख्ती से मना किया गया है। इस्लाम कत्ल और गारद गिरी से रोकता है और अम्न-व-सुकून की तलक़ीन करता है।
लेकिन आज इस्लाम के दुश्मन बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि इंसानियत के दुश्मन इस्लाम को बदनाम करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं । ___ जबकि इस्लाम ज़ुल्म को किसी हालत में बर्दाश्त नहीं करता। इस्लाम अमन-पसंद मजहब है। यह दुनिया का वाहिद मजहब है, जो तमाम इंसानों को बराबर करार देता है। इस्लाम के मुताबिक तमाम इंसान हजरत आदम अलेह सलाम की औलाद हैं, इसलिए किसी एक शख्स को दूसरे पर कोई बरतरी हासिल नहीं है। अल्लाह के नजदीक काला और गोरा, बादशाह और गुलाम, अमीर और गरीब सब बराबर हैं।

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