मजहब नहीं सिखाता,दूसरों पर ज़ुल्म करना

 आजकल दुनिया में लोगों ने अपने आप को मजहब के नाम पर बांट रखा है _और अपने आप को मजहब के तराजू में तौल कर एक दूसरे से बेहतर साबित करने में लगे हुए हैं ____मगर वह यह भूल गए हैं कि कोई मजहब किसी को भेदभाव और ऊंच-नीच की तालीम नहीं देता , हर मजहब का बुनियादी सच यही है कि हर मजहब में सच्चाई और नेकी पर चलने वाला अच्छा इंसान है और सवाब का मुस्तहिक़ है और बुराई की राह पर चलने वाला , दूसरों को दुख देने वाला दूसरों पर जुल्म करने वाला गुनहगार है ।
इस्लाम धर्म के मुताबिक सच्चा मुसलमान वही है जो दूसरों के लिए भी वही चीज पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता हो।
गीता में भी यही बात समझाई गई है कि जो दुख सुख मुझको होता है वही सब को होता है जो यह समझ कर सबसे अच्छा बर्ताव करता है उसी को शांति मिलती है।
यहूदी मजहब कहता है कि जिस बात से आप नफरत करते हो उसे अपने साथियों या दूसरे इंसानों के साथ कभी ना करो। 
मगर अफसोस के आजकल लोग अच्छा मुसलमान, अच्छा हिन्दू, अच्छा सिक्ख, अच्छा इसाई बनने की दौड़ में इंसानियत भूल चुके हैं ____ आज का हर इंसान अपने लिए अच्छा मकान, अच्छी सेहत, ढेर सारी दौलत और अमन-व-शांती चाहता है । मगर दूसरों के लिए ऐसा नहीं सोचता, दूसरों के दुख दर्द का उसे कोई ख़याल नहीं होता।
बस यही वजह है कि समाज में तरह-तरह की बुराइयां फैली हुई हैं और समाज के विकास का चक्र उलझ कर रह गया है।

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