वक़्त बुरा हो तो सब्र करो....

        सब्र लाज़िम है !

    सब्र एक ऐसी नेमत है जो हमें बेपनाह मसायल (परेशानियों) से निजात दिलाती है,---- मगर अफ़सोस हम ने अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में  सब्र का इस्तेमाल करना छोड़ दिया है इसलिए एक तरफ़ तो हम बहुत ज्यादा मुश्किलों और परेशानियों का शिकार होते जा रहे हैं और दूसरी तरफ़ हम फ्रस्टेशन(frustration), डिप्रेशन (depression) या टेंशन(tension) जैसी बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं क्योंकि हम सब्र की हक़ीकत से अनजान हैं। – सब्र यह नहीं है कि मजबूरी और लाचारी की हालत में कुछ ना करना और रो रो कर हर तकलीफ़ और मुसीबत को बर्दाश्त कर लेना,– बल्कि सब्र का मतलब है हिम्मत ना हारना और हर मुसीबत और परेशानी का डट कर मुकाबला करना और अपने इरादे पर मज़बूती से क़ायम रहना और इस बात को ना भूलना कि दुनिया एक आजमाइश की जगह है। यहाँ पर हर इंसान चाहे  जितना दौलतमंद हो जाए, चाहे जितना बड़ा ओहदेदार बन जाए या कितना ही नेक और परहेज़गार हो जाए ____मगर इस दुनिया में हर किसी की,– ख़ुशी के साथ गम और आराम के साथ तकलीफ़ जरूर जुड़ी होती है। बड़े-बड़े पैग़मर और वली औलिया भी तकलीफ़ और परेशानी से गुज़रे हैं, इसलिए अगर कोई शख्स ये चाहे कि उसे अपनी जिंदगी में कभी कोई तकलीफ़  परेशानी या सदमा न पहुंचे तो वो इस दुनिया की हकीक़त से बेख़बर है, क्योंकि दुख, तकलीफ़, परेशानी और सदमे से निजात इस दुनिया में मुमकिन नहीं।
लिहाज़ा इस दुनियावी जिंदगी में हर इंसान को किसी न किसी शक़्ल में तकलीफ़ और गमों से साबका जरूर पड़ता है, ऐसी सूरत में अगर इंसान बेसब्री जाहिर करेगा और हर वक़त जा-बे-जा अपने गमों का दुखड़ा रोता रहेगा और अपनी तक़दीर का गिला-शिक़वा करता रहेगा, तो वह हमेशा तकलीफ़ की घुटन का शिकार रहेगा और उसका विल पावर(will power) कमजोर होता जाएगा, ऐसी सूरत में इंसान डिप्रेशन का शिकार भी हो सकता है।
 __ लेकिन अगर इंसान दुख और तकलीफ़ के मौके पर यह सोचे कि यह दुनिया एक इम्तिहान का मरकज़ (केंद्र) है और इस में आने वाले हर शख्स को इस इम्तिहान से  गुज़रना ही होगा ,तो इंसान के दिल को तसल्ली मिलेगी और परेशानियों से मुकाबला करने की हिम्मत और ज़ज्बा पैदा होगा।
                  इसके अलावा इंसान इस बात पर भी यक़ीन रखे की क़ुदरत का कोई भी फैसला हिक़मत से खाली नहीं है चाहे वह हिक़मत हम इंसानों की समझ में आए या ना आए,– लिहाज़ा हमें क़ुदरत के फैसले का शिकवा करने की बजाय उस की हक़ीकत पर ईमान रखना चाहिए क्योंकि ऊपर वाला ही जानता है कि किस चीज़ में किसकी कितनी बेहतरी है इसलिए हमें परेशानी के वक्त हमेशा हिम्मत और सब्र से काम लेना चाहिए और ख़ुदा से अपनी बेहतरी के लिए दुआ करना चाहिए कि वह हमारे दिलों को सुकून अता फरमाए और हमें हर उस तकलीफ़  से महफूज़ रखें जो हमें बेचैन और परेशान कर देने वाली हो।

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