Corona virus khuda ka azaab hai

                               कॅरोना वायरस


कॅरोना वायरस जिसने पूरी दुनिया के इंसानों की निज़ाम-ए- ज़िन्दगी को दरहम बरहम कर के रख दिया है। लोगों में एक किस्म का ख़ौफ़-व-हराश पैदा हो गया है। लोगों में बेइत्मीनानी की क़ैफ़ियत तारी है, हर आदमी अपने आप और अपने रिश्तेदरों को खोने से डर रहा है। गर्ज़ ये कि कॅरोना वायरस पूरी दुनिया के इंसानी जान के लिए ख़तरा बन गया है, यह बीमारी डॉक्टरों के मुताबिक़ साँस लेने में दिक़त (तकलीफ़) के अलावां –– तो एक आम वायरल इनफेक्शन नजला जुखाम ही की तरह है लेकिन यह तेजी से एक इंसान से दूसरे इंसान मैं फ़ैलता है। इस वायरस के असरात कुछ दिनों बाद जाहिर होते हैं तब तक एक इंसान कई इंसानों को मुतासिर कर चुका होता है। इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं मिल सका है लेकिन इससे बचने की कुछ तदबीर (उपाए) हैं, जिस के इस्तमाल से इस बीमारी को तेज़ी से फ़ैलने से रोका जा सकता है, जैसे – अपने आसपास और अपने जिस्म की सफाई रखना, बार बार हाथ धोना और बिना हाथ धुले अपने आँख, नाक और मुँह को छूने से परहेज़ करना इसके अलावा सोशल डिस्टेंस रखना यानी एक इंसान दूसरे इंसान से कम से कम 1 मीटर की दूरी कायम रखें।
     वैसे तो कॅरोना वायरस से पहले भी बहुत से क़ुदरती बीमारियाँ वबा की सूरत में इंसानी जिंदगी को मुतासिर कर चुकी है मगर कॅरोना वायरस के बारे में हम कह सकते हैं कि यह एक दर्दनाक और सबक़ अमोज़ – अज़ाब है, इसमें एक कमज़ोर दिखने वाले इंसान के छीकने और खासने से दूसरा ताक़तवर इंसान भी कॅरोना जैसी बीमारी का शिकार हो सकता है।
     इस सूरते हाल के चलते – दिल और दिमाग ये सोचने पर मजबूर हो जाता है कि यह वाक़ई किसी मज़लूम की बद-दुआ का असर है, जो अज़ाब बन कर इंसानों पर नाज़िल हुआ है क्योंकि हर मजहब की आसमानी किताब में लिखा है कि मज़लूम की पुकार पर क़ुदरत भी कांप उठती हैं। –– तो मुमकिन है कि आज क़ुदरत की तरफ़ से कॅरोना वायरस की शक़्ल में अज़ाब नाज़िल होने की वजह  शाम और कश्मीर के मज़लूम लोगों की पुकार भी हो सकती हैं, मजहब के नाम पर सताए जाने वाले लोगों की बद्दुआ भी हो सकती है और मां-बाप और रिश्तेदारों के साथ की जाने वाली नाफ़रमानी और दिल दुखाने वाले बर्ताव भी हो सकते हैं।
क्योंकि मुहावरे के तौर पर हम बचपन से सुनते आए हैं कि क़ुदरत की लाठी में आवाज नहीं होती और क़ुदरत के यहां देर है अंधेर नहीं है तो हमें तारीख़ के पन्नों में इस बात का सबूत मिलता है कि जब जब जमीन पर ज़ुल्म-व-ज़्यादती, क़त्ल-व-ग़ारत, झूठ फरेब नाइंसाफी और अमानत में ख़यानत जैसी नाफरमानियाँ बढ़ जाती हैं तो क़ुदरत का अज़ाब नाज़िल होता है,–– कहीं नाफरमान लोगों पर ख़ुदा का अज़ाब आग के गोलों की सूरत में बरसता है, तो कहीं पत्थरों की शक्ल में,––– कहीं पानी में डुबा कर पूरी बस्ती को ग़र्क़ कर देता है, ––– तो कभी ज़लज़ले की वजह से सब नेस्तनाबूद हो जाता है, ––– कभी ख़ुदा अबाबील जैसे मामूली चिड़िया के लश्कर से हाथियों समेत इंसानों को ख़ाक़ में मिला देता है तो कभी ताऊन और स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों से लोगों को हलाक (dead) कर देता है।


 मगर कॅरोना नामी अज़ाब ने इस मर्तबा पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है, आज से पहले आने वाली हर आफ़त हर मुश्क़िल हर वबा किसी एक इलाके तक ही महदूद (सिमित) रही है, या उसके फैलाव की रफ़्तार इतनी तेज नहीं हुई है जितनी तेजी से कॅरोना वायरस के इंफेक्शन और इसके फैलाव की मिसाल मिलती है,–– जबकि दूसरी वबाई बीमारियों के बनिस्बत (तुलना) इस में मरने वालों की तादाद कम है मगर इसका असर दुनिया भर की माशियत (economy) के लिए मौत से कम नहीं है। क्योंकि पूरी दुनिया की इंसानी जिंदगी एक साथ एक आफ़त के सबब (कारण) एक ही तरह से मुतासिर (infect) हुई हो। मगर हैरत की बात तो यह है कि इस टेक्निकल (technical) और साइंटिफिक (scientific) दौर में किसी के पास कॅरोना वाइरस के इंफैक्शन से बचने का इलाज नहीं है।
लिहाज़ा यह सारे मंजर और वाक़यात साबित करते हैं कि बड़े से बड़ा इंसान क़ुदरत के सामने कितना कमज़ोर और बेबस है जैसा कि आज देखा जा रहा है कि इस क़ुदरती आफ़त के सामने एक आम इंसान से ले कर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पावरफुल सल्तनत और टेक्नोलॉजी में सबसे आगे चाइना सभी ख़ोफ़-ज़दा (डरे) हैं। यह बड़े-बड़े मुमालिक़ (देश) जो अपनी ताक़त के गुरूर में जमीन पर अकड़ते फिरते थे आज एक छोटे से वायरस से डर कर छिपते फिर रहे हैं, और उन्हें ये अंदाज भी होने लगा है कि इस दुनिया का ख़ालिक़ और मालिक़ इंसान नहीं बल्कि ख़ुदा की ज़ात है। जब जब इंसान दौलत, ताक़त और रुतबे के नशे में ख़ुदा के हिक़मत और ताक़त को भुला देता है तो ख़ुदा ऐसे इंसानों को उनकी औक़ात याद दिलाने के लिए इस तरह के क़ुदरती आफ़त में मुब्तिला (ग्रस्त) कर देता है।








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