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मजहब नहीं सिखाता,दूसरों पर ज़ुल्म करना

 आजकल दुनिया में लोगों ने अपने आप को मजहब के नाम पर बांट रखा है _और अपने आप को मजहब के तराजू में तौल कर एक दूसरे से बेहतर साबित करने में लगे हुए हैं ____मगर वह यह भूल गए हैं कि कोई मजहब किसी को भेदभाव और ऊंच-नीच की तालीम नहीं देता , हर मजहब का बुनियादी सच यही है कि हर मजहब में सच्चाई और नेकी पर चलने वाला अच्छा इंसान है और सवाब का मुस्तहिक़ है और बुराई की राह पर चलने वाला , दूसरों को दुख देने वाला दूसरों पर जुल्म करने वाला गुनहगार है । इस्लाम धर्म के मुताबिक सच्चा मुसलमान वही है जो दूसरों के लिए भी वही चीज पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता हो। गीता में भी यही बात समझाई गई है कि जो दुख सुख मुझको होता है वही सब को होता है जो यह समझ कर सबसे अच्छा बर्ताव करता है उसी को शांति मिलती है। यहूदी मजहब कहता है कि जिस बात से आप नफरत करते हो उसे अपने साथियों या दूसरे इंसानों के साथ कभी ना करो।  मगर अफसोस के आजकल लोग अच्छा मुसलमान, अच्छा हिन्दू, अच्छा सिक्ख, अच्छा इसाई बनने की दौड़ में इंसानियत भूल चुके हैं ____ आज का हर इंसान अपने लिए अच्छा मकान, अच्छी सेहत, ढेर सारी दौलत और अमन-व-शांती चाहता है ।

ज़माने से शिकायत क्यों ?

हर ज़ुबान पर शिकायत होती है कि ज़माना बदल गया है, लोग बदल गए हैं, लेकिन कहाँ---? आज भी वही चाँद सितारे हैं, वही सूरज है और वही ज़मीन है । आज भी दिन के बाद रात आती है और रात के बात दिन । आज भी धनक के सात रंग मौजूद हैं, उनमें कोई नए रंग शामिल नहीं हुए । आज भी संगीत के सात सुर हैं और उन की धुन सुन कर दिल में सुरूर पैदा होता है । आज भी मोहब्बत में दिल धड़कता है और नफरत में दिल जलता है |  आज भी इंसान में कुछ पाने की चाह और ललक उतनी ही है, जितनी पहले हुआ करती थी । आज भी लोग खुश होते हैं तो चेहरे पर नूर आता है, जिंदगी खूबसूरत हो जाती है । आज भी लोग रोते हैं तो उनकी आंखों से खारे आंसू बहते हैं । फिर क्या बदला है ? हाँ ___!  बदला है तो सिर्फ इंसान ।  इंसान के जज्बात ।  इंसान की रूह । यानी _ समंदर वही है सिर्फ कश्तियां बदल गई हैं। मौजे वही हैं, सिर्फ मौजों से लड़ने वाले हौसले और अरमान बदल गए हैं । राहें वही हैं, बस रहगुज़र बदल गए हैं। और कुछ नहीं________ और कुछ नहीं

कॅरोना से बात-चीत

शिकवा :- बहोत डरते हैं हम तुमसे कॉरोना हमारे पीछे तुम मत पड़ोना हमारी जान लेकर क्या मिलेगा खुदा के वास्ते ऐसा मत करो ना जवाब  शिकवा :- तुम्हारे ही गुनाहों की सजा हूँ माफी मांगो सभी तौबा करो ना बड़े बेफिक्र फिरते थे जहां में अब थोड़ा रब से भी तुम डरो ना अगर बचना है तुमको वायरस से जिस्म और दिल दोनों साफ रखो ना

खुदी को कैसे बुलंद करें

यह बात सही है कि अल्लाह तआला की मर्ज़ी के बगैर कोई काम मुमकिन नहीं है | उस की मर्ज़ी और उस के हुक्म के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता, मगर जो लोग यह समझते हैं कि अल्लाह तआला की मर्ज़ी और उस की रज़ा (ख़ुशी) एक ही चीज़ है तो वह अपनी इस्लाह(correction) कर लें क्योंकि ख़ुदा की मर्ज़ी उस की रज़ा से मुखतलिफ़ चीज़ है| यक़ीनन हर काम अल्लाह ताला की मर्ज़ी से होता है लेकिन राज़ी वह उन्ही कामों से होता है, जिन का उस ने हुक्म दे रखा है न कि हर उस काम से जो इंसान अल्लाह की मर्ज़ी से करता है | यानी चोरी, बलात्कारी, ज़ुल्म और बड़े-बड़े गुनाह बन्दा करता है | अगर अल्लाह तआला चाहे तो किसी को यह गुनाह करने की ताकत ही ना दे, फ़ौरन उस का हाथ पकड़ ले, उस के क़दमो को रोक दे, उस की नज़र सलब कर ले, लेकिन यह सब ज़बर की सूरतें हैं और अल्लाह तआला ज़बरदस्ती के हक़ में नहीं, इसलिए उसने इंसान को इख्तियार की आज़ादी दे दी है |बेशक़ सातों असमान और अर्श-आज़म का मालिक-व-खालिक़ ख़ुदा ही है, मौत और ज़िन्दगी, मौसम का बदलना सैयारों की गर्दिश से दिन और रात का वजूद. गर्ज़ यह कि दोनोँ आलम का ज़रह-ज़रह ख़ुदा के हुक्म का मोहताज़ है | अल्लाह तआला ने आसमान और ज़मी

International Arbitration

International Arbitration Arbitration is one of the methods of settling disputes between two or more persons or parties by reference of the disputes to an independent and impartial person called arbitrator. Arbitrator is a person who is appointed to determine differences and disputes between two or more parties by their mutual consent. Arbitrator gives its opinion without being partial and then tries to patch up between the two parties. International arbitration also allows the same method. Therefore, when there is any problem between two countries then they take the matter to international court of arbitration. International arbitration is sometimes called a hybrid form of international disputes resolution. At present, there is a government of international agreements in the world, and with the United Nations and other international organizations, they are controlling the world’s system through these international agreements. The World War of Justice is the pri

Amanat Aur Dayanatdaari

अमानत और दयानतदारी आपस के लेन-देन के मामले में जो इखलाकी जौहर मरकजी हैसियत रखता है वह दयानतदारी और अमानत है. इस का मतलब यह है कि इंसान अपने कारोबार में ईमानदार हो और जो जिस का, जितना लिया हो, उस को पूरी इमानदारी से रत्ती-रत्ती दे दे. इसी को अरबी में अमानत कहते हैं ___ ख़यानत को इस तरह बयान किया गया है कि अगर एक का हक़ दूसरे के ज़िम्मे वाजिब हो, उस के अदा करने में ईमानदारी न बरतना ख़यानत. इस के अलावा अगर एक की चीज दूसरे के पास आमानत हो और वह उस में रद्दो-बदल करता है या मांगने पर वापस नहीं करता हो तो वह खुली होई ख़यानत है. हमारे रसूल सल्लललाहू अलैहिवसल्लम को नबूवत से पहले मक्का वालों की तरफ से अमीन का खिताब मिला था. क्योंकि आप स. अपने कारोबार में दयानतदार थे, और जो लोग, जो कुछ आप स. के पास रखवाते थे, वो आप स. ज्यों का त्यों वापिस करते थे. हम ये जान लें कि अमानत का दायरा सिर्फ रूपये-पैसे, जायदाद और माली अशिया ( चीजों) तक महदूद नहीं हैं. जैसा कि आम लोग समझते हैं. बल्कि हर मआली, कानूनी और इखलाकी अमानत तक वसीअ (फैला हुआ) है. अगर किसी की कोई चीज़ आप के पास रखी है, तो उसके माँगने पर या यूँ भी

Ibadat Ka Matlab

 इस्लाम में   इबादत का मतलब -Sadiya Khan Sultanpuri           इस्लाम में इबादत के लिए ख़ारजी(दिखावा) रसूम(रस्म) का कोई वजूद नहीं है, न ही सूरज के निकलने का इंतजार करने की या उस की तरफ देखने की हाजत (ज़रूरत) है, न सामने आग का अलाव जलाने की ज़रुरत, न देवताओं, बुज़ुर्गों और वलियों के मुजस्समों (बुतों) को पेशेनज़र रखने की इजाज़त है, न घंटियों और नकूसों की ज़रुरत है, न लोबान और दूसरे बख़ुरात जलाने की रस्म और न ही किसी ख़ास किस्म के कपड़ों की क़ैद _____ इन तमाम बैरूनी (बाहरी) रसूम और क़यूद (क़ैद) से इस्लाम की इबादत पाक और आज़ाद है | इस्लाम में ख़ुदा की इबादत और परस्तिश(पूजा) के वक़्त बंदे के जिस्म-व-जान के अलावा किसी चीज़ की ज़रुरत नहीं, यानि इस्लाम में इबादत का वो तंग मफ़हूम नहीं जो दूसरे जगहों में पाया जाता है. इस्लाम में इबादत के लफ्ज़ी मायने अपनी आजिज़ी और दरमांदगी (दीनता) का इज़हार है और शरीयत में ख़ुदा-ए-अज्ज़ोअजल के सामने अपनी बंदगी और उबूदियत(इबादत) के नज़राने को पेश करना और उसके एहकाम को बजा लाना है. आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इबादत का जो मफ़हूम दुनिया के सामने पेश किया है, इसमें सबसे पहली चीज़ दिल क