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Corona virus khuda ka azaab hai

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                               कॅरोना वायरस For more information, click here कॅरोना वायरस जिसने पूरी दुनिया के इंसानों की निज़ाम-ए- ज़िन्दगी को दरहम बरहम कर के रख दिया है। लोगों में एक किस्म का ख़ौफ़-व-हराश पैदा हो गया है। लोगों में बेइत्मीनानी की क़ैफ़ियत तारी है, हर आदमी अपने आप और अपने रिश्तेदरों को खोने से डर रहा है। गर्ज़ ये कि कॅरोना वायरस पूरी दुनिया के इंसानी जान के लिए ख़तरा बन गया है, यह बीमारी डॉक्टरों के मुताबिक़ साँस लेने में दिक़त (तकलीफ़) के अलावां –– तो एक आम वायरल इनफेक्शन नजला जुखाम ही की तरह है लेकिन यह तेजी से एक इंसान से दूसरे इंसान मैं फ़ैलता है। इस वायरस के असरात कुछ दिनों बाद जाहिर होते हैं तब तक एक इंसान कई इंसानों को मुतासिर कर चुका होता है। इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं मिल सका है लेकिन इससे बचने की कुछ तदबीर (उपाए) हैं, जिस के इस्तमाल से इस बीमारी को तेज़ी से फ़ैलने से रोका जा सकता है, जैसे – अपने आसपास और अपने जिस्म की सफाई रखना, बार बार हाथ धोना और बिना हाथ धुले अपने आँख, नाक और मुँह को छूने से परहेज़ करना इसके अलावा सोशल डिस्टेंस रखना यानी एक इंसान दूसरे इ

वक़्त बुरा हो तो सब्र करो....

        सब्र लाज़िम है !     सब्र एक ऐसी नेमत है जो हमें बेपनाह मसायल (परेशानियों) से निजात दिलाती है,---- मगर अफ़सोस हम ने अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में  सब्र का इस्तेमाल करना छोड़ दिया है इसलिए एक तरफ़ तो हम बहुत ज्यादा मुश्किलों और परेशानियों का शिकार होते जा रहे हैं और दूसरी तरफ़ हम फ्रस्टेशन(frustration), डिप्रेशन (depression) या टेंशन(tension) जैसी बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं क्योंकि हम सब्र की हक़ीकत से अनजान हैं। – सब्र यह नहीं है कि मजबूरी और लाचारी की हालत में कुछ ना करना और रो रो कर हर तकलीफ़ और मुसीबत को बर्दाश्त कर लेना,– बल्कि सब्र का मतलब है हिम्मत ना हारना और हर मुसीबत और परेशानी का डट कर मुकाबला करना और अपने इरादे पर मज़बूती से क़ायम रहना और इस बात को ना भूलना कि दुनिया एक आजमाइश की जगह है। यहाँ पर हर इंसान चाहे  जितना दौलतमंद हो जाए, चाहे जितना बड़ा ओहदेदार बन जाए या कितना ही नेक और परहेज़गार हो जाए ____मगर इस दुनिया में हर किसी की,– ख़ुशी के साथ गम और आराम के साथ तकलीफ़ जरूर जुड़ी होती है। बड़े-बड़े पैग़मर और वली औलिया भी तकलीफ़ और परेशानी से गुज़रे हैं, इसलिए अगर क

वजूद की जंग

वजूद की जंग  ( सादिया खान सुल्तानपुरी)          रात का वह दूसरा पहर था, जब ओल्डेज होम की इमारत में एक कमरे की खिड़की से आने वाली रोशनी   , ...अंधरी रात में चिराग की मानिंद उजागर हो रही थी. यह मिस्टर ज़ोकी का कमरा था, सत्तर साल के मिस्टर ज़ोकी जो हिंदुस्तान से यूरोप हिजरत के बाद ज़ोकी से जैकी हो गये थे, अपने कमरे में तन्हा निहायत ग़मगीन बैठे सोंचो के यलगार में रवां-दंवा थे. उन का गम न तो समाजी था न ही मआशी. उन्हें गम तो सिर्फ अपने गुजरे हुए ज़माने को लेकर था. बचपन से लेकर अब तक का एक-एक लम्हा एक-एक गलती उन की आखों के सामने फिल्मी परदे पर फ्लैशबैक की तरह दौड़ रही थी. मिस्टर ज़ोकी अपने उस दौर को याद करके तड़प उठे जब उनकी शख्शियत सकाफ़ती खुदकुशी के दर पे थी. उनकी कैफियत वैसी ही होती जा रही थी जैसा कि पश्चिमी मुल्कों के बारे में कहा जाता है कि उनका बुनियादी मसला न तो मआशी है, और न ही बदलती हुई आबादी बल्कि असल मसला है, इखलाक का गुम हो जाना. मिस्टर ज़ोकी भी अपनी मज़हबी, नस्ली और इनसानी इख्लाक़ियात को फना करने के दर पे थे. इन्हें मज़हब, समाज, रिश्ते और जज़्बात इन सारी चीज़ों से कोई लगाव न था. उनकी ख्वा

मजहब नहीं सिखाता,दूसरों पर ज़ुल्म करना

 आजकल दुनिया में लोगों ने अपने आप को मजहब के नाम पर बांट रखा है _और अपने आप को मजहब के तराजू में तौल कर एक दूसरे से बेहतर साबित करने में लगे हुए हैं ____मगर वह यह भूल गए हैं कि कोई मजहब किसी को भेदभाव और ऊंच-नीच की तालीम नहीं देता , हर मजहब का बुनियादी सच यही है कि हर मजहब में सच्चाई और नेकी पर चलने वाला अच्छा इंसान है और सवाब का मुस्तहिक़ है और बुराई की राह पर चलने वाला , दूसरों को दुख देने वाला दूसरों पर जुल्म करने वाला गुनहगार है । इस्लाम धर्म के मुताबिक सच्चा मुसलमान वही है जो दूसरों के लिए भी वही चीज पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता हो। गीता में भी यही बात समझाई गई है कि जो दुख सुख मुझको होता है वही सब को होता है जो यह समझ कर सबसे अच्छा बर्ताव करता है उसी को शांति मिलती है। यहूदी मजहब कहता है कि जिस बात से आप नफरत करते हो उसे अपने साथियों या दूसरे इंसानों के साथ कभी ना करो।  मगर अफसोस के आजकल लोग अच्छा मुसलमान, अच्छा हिन्दू, अच्छा सिक्ख, अच्छा इसाई बनने की दौड़ में इंसानियत भूल चुके हैं ____ आज का हर इंसान अपने लिए अच्छा मकान, अच्छी सेहत, ढेर सारी दौलत और अमन-व-शांती चाहता है ।

ज़माने से शिकायत क्यों ?

हर ज़ुबान पर शिकायत होती है कि ज़माना बदल गया है, लोग बदल गए हैं, लेकिन कहाँ---? आज भी वही चाँद सितारे हैं, वही सूरज है और वही ज़मीन है । आज भी दिन के बाद रात आती है और रात के बात दिन । आज भी धनक के सात रंग मौजूद हैं, उनमें कोई नए रंग शामिल नहीं हुए । आज भी संगीत के सात सुर हैं और उन की धुन सुन कर दिल में सुरूर पैदा होता है । आज भी मोहब्बत में दिल धड़कता है और नफरत में दिल जलता है |  आज भी इंसान में कुछ पाने की चाह और ललक उतनी ही है, जितनी पहले हुआ करती थी । आज भी लोग खुश होते हैं तो चेहरे पर नूर आता है, जिंदगी खूबसूरत हो जाती है । आज भी लोग रोते हैं तो उनकी आंखों से खारे आंसू बहते हैं । फिर क्या बदला है ? हाँ ___!  बदला है तो सिर्फ इंसान ।  इंसान के जज्बात ।  इंसान की रूह । यानी _ समंदर वही है सिर्फ कश्तियां बदल गई हैं। मौजे वही हैं, सिर्फ मौजों से लड़ने वाले हौसले और अरमान बदल गए हैं । राहें वही हैं, बस रहगुज़र बदल गए हैं। और कुछ नहीं________ और कुछ नहीं

कॅरोना से बात-चीत

शिकवा :- बहोत डरते हैं हम तुमसे कॉरोना हमारे पीछे तुम मत पड़ोना हमारी जान लेकर क्या मिलेगा खुदा के वास्ते ऐसा मत करो ना जवाब  शिकवा :- तुम्हारे ही गुनाहों की सजा हूँ माफी मांगो सभी तौबा करो ना बड़े बेफिक्र फिरते थे जहां में अब थोड़ा रब से भी तुम डरो ना अगर बचना है तुमको वायरस से जिस्म और दिल दोनों साफ रखो ना

खुदी को कैसे बुलंद करें

यह बात सही है कि अल्लाह तआला की मर्ज़ी के बगैर कोई काम मुमकिन नहीं है | उस की मर्ज़ी और उस के हुक्म के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता, मगर जो लोग यह समझते हैं कि अल्लाह तआला की मर्ज़ी और उस की रज़ा (ख़ुशी) एक ही चीज़ है तो वह अपनी इस्लाह(correction) कर लें क्योंकि ख़ुदा की मर्ज़ी उस की रज़ा से मुखतलिफ़ चीज़ है| यक़ीनन हर काम अल्लाह ताला की मर्ज़ी से होता है लेकिन राज़ी वह उन्ही कामों से होता है, जिन का उस ने हुक्म दे रखा है न कि हर उस काम से जो इंसान अल्लाह की मर्ज़ी से करता है | यानी चोरी, बलात्कारी, ज़ुल्म और बड़े-बड़े गुनाह बन्दा करता है | अगर अल्लाह तआला चाहे तो किसी को यह गुनाह करने की ताकत ही ना दे, फ़ौरन उस का हाथ पकड़ ले, उस के क़दमो को रोक दे, उस की नज़र सलब कर ले, लेकिन यह सब ज़बर की सूरतें हैं और अल्लाह तआला ज़बरदस्ती के हक़ में नहीं, इसलिए उसने इंसान को इख्तियार की आज़ादी दे दी है |बेशक़ सातों असमान और अर्श-आज़म का मालिक-व-खालिक़ ख़ुदा ही है, मौत और ज़िन्दगी, मौसम का बदलना सैयारों की गर्दिश से दिन और रात का वजूद. गर्ज़ यह कि दोनोँ आलम का ज़रह-ज़रह ख़ुदा के हुक्म का मोहताज़ है | अल्लाह तआला ने आसमान और ज़मी