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दुआ और मेहनत – क्या हमारी किस्मत बदल सकती है?

 दुआ और मेहनत – क्या हमारी किस्मत बदल सकती है? "जो हमारी क़िस्मत में लिखा है, वही होगा।" — यह बात हम अक्सर सुनते हैं। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? या फिर हमारी **मेहनत, दुआ और नीयत** हमारी तक़दीर को बदल सकती है? इस लेख में हम इसी सवाल का जवाब **इस्लाम की रोशनी में** समझने की कोशिश करेंगे। तक़दीर क्या है? तक़दीर का मतलब है — **वह योजना जो अल्लाह तआला ने हर इंसान के लिए तय कर रखी है।** अल्लाह तआला को हर चीज़ का इल्म पहले से है। उसने जो कुछ होना है, सब कुछ **"लौहे महफ़ूज़"** (एक पाक किताब में) में लिख दिया है। यह अल्लाह की क़ुदरत और हिकमत का हिस्सा है। अल्लाह तआला ने इस दुनिया को एक खास व्यवस्था (सिस्टम) के साथ बनाया है। हर चीज़, हर घटना और हर पल उसके ज्ञान और नियंत्रण में है। इस्लाम में तक़दीर (क़िस्मत) पर यकीन रखना ईमान का एक अहम हिस्सा है। तक़दीर का मतलब है कि अल्लाह ने पहले से ही सब कुछ जान रखा है और हर इंसान के नसीब में जो कुछ लिखा है, वो उसे मिलेगा। लेकिन इस्लाम हमें सिर्फ़ बैठकर इंतज़ार करने को नहीं कहता, बल्कि दुआ, मेहनत और अच्छे काम करने का हुक्म देता है।...

इस्लाम धर्म क्या है ? ISLAM KE SIDDHAHNT AUR VISHESHTAEN

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इस्लाम धर्म क्या है ? इस्लाम के पाँच सिद्धांत व विशेषताएँ  इस्लाम का शाब्दिक अर्थ "अमन और सलामती" है ।इस्लाम एक तौहीदी मजहब है यानी एक अल्लाह की इबादत करने वाला । इस्लाम मजहब - अल्लाह की तरफ से आख़िरी रसूल आप स.अ व. के जरिए इंसानों तक पहुंचाई गई आखिरी आसमानी किताब "कुरान मजीद" की तालीम पर कायम है, जोकि  610 से 632 तक- तक़रीबन 23 साल के अरसे में मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर जिब्राइल अलैहिस्सलाम नामी फरिश्ते के जरिए अरबी जुबान में  अल्लाह की तरफ से भेजा गया । इस्लाम सिर्फ एक मजहब नहीं बल्कि इंसान की रहनुमाई के लिए जो निजाम या फार्मूला और कानून अल्लाह की तरफ से फरमाया गया है __ उसका नाम इस्लाम है। इस्लाम की आसमानी किताब कुरान मजीद में क्या तालीम दी गई है - कुरान खुद अपनी हैसियत के बारे में बयान करता है कि यह इंसान के लिए एक रहनुमा एक हिदायत और अच्छे बुरे की तमीज बताने वाली किताब है । दूसरे लफ्जों में हम कह सकते हैं कि इस्लाम अल्लाह की तरफ से आखरी और मुकम्मल दीन है। जो इंसान के तमाम मसायल का हल पेश करता है और सिसकती हुई इंसानियत को अमन और सुकून की दौलत अता करते ...

Zaqat ka matlab kya hai ? Aur Zaqat ki Rahmat aur Barkat

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ज़कात का मतलब क्या है ? ज़कात की रहमत और बरकत        ज़कात के बारे में मुख़्तसर और मुकम्मल जानकारी              नमाज़ के बाद जिसका असल ताल्लुक ख़ुदा और बंदे के आपसी सिलसिले और राब्ते से है, वो है सदक़ा और ज़कात। ज़कात के दो मतलब होते हैं, एक का मतलब पाकीज़गी होता है और दूसरे का मतलब होता है तरक़्क़ी और नशोनुमा(progress)।  यानी ज़कात का एक पहलू मालदारों को गुनाहों कोताहियों और मुसीबतों से पाक करता है और उनकी बुराइयों और मुसीबतों का कफ्फारह बनता है और दूसरा पहलू ये है कि जब इंसान सदक़ा और खैरात करता है तो उस माल से समाज के लाचार और गरीब लोगों की मदद होती है। ज़कात क्या है  :- ज़कात आपस में  इन्सानों के दरम्यान हमदर्दी और एक-दूसरे की मदद का नाम है। इसलिए अल्लाह ताला ने कुरान में हर जगह नमाज़ के साथ साथ ज़कात की ताकीद की है। क्योंकि नमाज़ हुकुकुल इलाही में से है‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌, यानी अल्लाह का हक़ अदा करने का नाम नमाज़ हैै और हुकुकुल इबाद यानी बंदे का हक़ अदा करने का नाम हुकुकुल इबाद है। इन दोनों...

बच्चों के दिल की परवरिश कैसे करना चाहिए

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इस ब्लॉग में आप पढ़ सकते हैं कि बच्चों के शरीर और दिमाग को तंदुरुस्त रखने के साथ-साथ दिल को भी कैसे तंदुरुस्त रखा जासकता है                                                                                                                                                                                                                                इंसान का व्यवहार और बर्ताव (behavior) बहूत महत्वपूर्ण (important) होता है। क्योंकि द...

इस्लाम में खेल_कूद की अहमियत

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 इस्लाम ऐसा मज़हब है जो फ़ितरत (प्रकृति) के तमाम तक़ाज़ों और जरूरतों की तकमील (पूरा) करता है और जिंदगी के हर मोड़ पर इंसानियत की रहनुमाई (guide) की सलाहियत (ability) रखता है। इस में रहबानियात जोग और सन्यास की इजाज़त नहीं है ,यानि हर वक्त संजीदगी (गंभीरता) से इबादत में लगे रहना और दुनिया की तमाम लज़्ज़तों और नेमतों से मुँह मोड़ लेना इस्लाम की तालीम नहीं है, मतलब इस्लामी निज़ाम कोई ख़ुश्क निज़ाम नहीं है जिसमें खेल कूद और जिंदादिली की गुंजाइश न हो। ___ इस्लाम आख़िरत की क़ामयाबी को अहमियत देते हुए तमाम दुनियावी मसले में भी रियायत करता है, इसकी पाक़ीज़ा तालीम में जहाँ एक तरफ इबादत और परहेज़गारी, समाज में आपस के व्यहवार और एख़लाकियात-व-आदाब ,जैसे ख़ास मसाईल पर तवज्जो दी गई है वहीं जिस्मानी वर्जिश और मनोरंजन की भी रियायत दी गई है, ۔۔۔۔ क्योंकि अल्लाह तआला ने इंसान की फ़ितरत( मानव प्रकृति) ही कुछ ऐसी बनाई है कि वह एक ही हालत या एक ही दशा में नहीं रह सकता, उस पर मुख़्तलिफ़ हालतों (विभिन्न स्थितियों) और मुख़्तलिफ़ ख़यालात (विभिन्न विचारों) का मेला लगा रहता है।      मिट्टी से बने इंसान और नूर से बन...

Corona virus khuda ka azaab hai

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                               कॅरोना वायरस For more information, click here कॅरोना वायरस जिसने पूरी दुनिया के इंसानों की निज़ाम-ए- ज़िन्दगी को दरहम बरहम कर के रख दिया है। लोगों में एक किस्म का ख़ौफ़-व-हराश पैदा हो गया है। लोगों में बेइत्मीनानी की क़ैफ़ियत तारी है, हर आदमी अपने आप और अपने रिश्तेदरों को खोने से डर रहा है। गर्ज़ ये कि कॅरोना वायरस पूरी दुनिया के इंसानी जान के लिए ख़तरा बन गया है, यह बीमारी डॉक्टरों के मुताबिक़ साँस लेने में दिक़त (तकलीफ़) के अलावां –– तो एक आम वायरल इनफेक्शन नजला जुखाम ही की तरह है लेकिन यह तेजी से एक इंसान से दूसरे इंसान मैं फ़ैलता है। इस वायरस के असरात कुछ दिनों बाद जाहिर होते हैं तब तक एक इंसान कई इंसानों को मुतासिर कर चुका होता है। इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं मिल सका है लेकिन इससे बचने की कुछ तदबीर (उपाए) हैं, जिस के इस्तमाल से इस बीमारी को तेज़ी से फ़ैलने से रोका जा सकता है, जैसे – अपने आसपास और अपने जिस्म की सफाई रखना, बार बार हाथ धोना और बिना हाथ धुले अपने आँख, नाक और ...

वक़्त बुरा हो तो सब्र करो....

        सब्र लाज़िम है !     सब्र एक ऐसी नेमत है जो हमें बेपनाह मसायल (परेशानियों) से निजात दिलाती है,---- मगर अफ़सोस हम ने अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में  सब्र का इस्तेमाल करना छोड़ दिया है इसलिए एक तरफ़ तो हम बहुत ज्यादा मुश्किलों और परेशानियों का शिकार होते जा रहे हैं और दूसरी तरफ़ हम फ्रस्टेशन(frustration), डिप्रेशन (depression) या टेंशन(tension) जैसी बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं क्योंकि हम सब्र की हक़ीकत से अनजान हैं। – सब्र यह नहीं है कि मजबूरी और लाचारी की हालत में कुछ ना करना और रो रो कर हर तकलीफ़ और मुसीबत को बर्दाश्त कर लेना,– बल्कि सब्र का मतलब है हिम्मत ना हारना और हर मुसीबत और परेशानी का डट कर मुकाबला करना और अपने इरादे पर मज़बूती से क़ायम रहना और इस बात को ना भूलना कि दुनिया एक आजमाइश की जगह है। यहाँ पर हर इंसान चाहे  जितना दौलतमंद हो जाए, चाहे जितना बड़ा ओहदेदार बन जाए या कितना ही नेक और परहेज़गार हो जाए ____मगर इस दुनिया में हर किसी की,– ख़ुशी के साथ गम और आराम के साथ तकलीफ़ जरूर जुड़ी होती है। बड़े-बड़े पैग़मर और वली औलिया भी तकलीफ...